कुंडली में चार पुरुषार्थ

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वेदों के अनुसार, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष अर्थात् चार पुरुषार्थ मानव जीवन के अंतर्निहित उद्देश्य हैं; इन चार पुरुषार्थों को निम्नलिखित कुंडली में अच्छी तरह से दर्शाया गया है;

Four Purusharthas in Horoscope
कुंडली में मानव जीवन के चार पुरुषार्थों का चित्रण

चार पुरुषार्थ: मानव जीवन के अंतर्निहित उद्देश्य

धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष नामक इन चार पुरुषार्थों को निम्नानुसार परिभाषित किया जा सकता है: –

  • धर्म का अर्थ है स्वभाव और धार्मिकता; धर्म को अपनाने से व्यक्ति के कर्मों को सुधारा जा सकता है;
  • अर्थ के मायने है समृद्धि और आर्थिक मूल्य; अर्थ अर्जित करके व्यक्ति अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर सकता है;
  • काम का अर्थ है आनंद, प्रेम, इच्छाएं और मनोवैज्ञानिक मूल्य;
  • मोक्ष का अर्थ है मुक्ति, आध्यात्मिक मूल्य और आत्म-साक्षात्कार; मोक्ष प्राप्त करने के बाद व्यक्ति जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है;
  • धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को मानव जीवन का आधार माना जाता है; कहा जाता है कि इन चार पुरुषार्थों को अपनाकर ही मानव जीवन का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है;
  • धर्म, अर्थ और काम, ये तीन पुरुषार्थ मोक्ष प्राप्त करने के साधन हैं; त्रिवर्ग पुरुषार्थ पृथ्वी पर मनुष्य द्वारा किए गए कार्य हैं और मोक्ष इन तीन कार्यों का परिणाम है; धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, अर्थ, धर्म और काम के त्रिवर्ग कर्तव्यों के पूरा होने के बाद मनुष्य मोक्ष प्राप्त करता है;

कुंडली में चार पुरुषार्थों का चित्रण

ज्योतिष भाग्य के साथ-साथ कर्म का भी विज्ञान है; ज्योतिष हमें सही दिशा में कार्य करने की प्रेरणा देता है; कुंडली के विभिन्न भावों से अलग-अलग पुरुषार्थों का विचार किया जाता है; कुंडली में बारह भाव होते हैं और जन्म से मोक्ष तक के सभी कर्म इन बारह घरों में निहित होते हैं;

ज्योतिष के मूल नियम और सिद्धांत चार पुरुषार्थों पर आधारित हैं; जन्म कुंडली ज्योतिष केवल मानव के कर्म और उसके परिणामों की चर्चा करता है; इसलिए, ज्योतिष के माध्यम से चार पुरुषार्थों की व्याख्या पूरी तरह से समझी जा सकती है; बारीकी से विचार करने पर, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के रूप में चार पुरुषार्थ कुंडली में त्रिकोण के चार समूहों द्वारा व्यक्त किए जाते हैं;

  • धर्म पुरुषार्थ का प्रतिनिधित्व कुंडली के प्रथम भाव, पंचम भाव और नवम भाव द्वारा किया जाता है;
  • अर्थ पुरुषार्थ का प्रतिनिधित्व कुंडली के दूसरे भाव, छठे भाव और दसवें भाव द्वारा किया जाता है;
  • काम पुरुषार्थ का प्रतिनिधित्व कुंडली के तीसरे भाव, सातवें भाव और ग्यारहवें भाव द्वारा किया जाता है;
  • मोक्ष पुरुषार्थ का प्रतिनिधित्व कुंडली के चौथे भाव, आठवें भाव और बारहवें भाव द्वारा किया जाता है;

कर्म और कर्मफल का सम्बन्ध कारण-प्रभाव सिद्धान्त पर आधारित है, जहाँ कर्म को कारण और परिणाम को प्रभाव माना जाता है; जिस प्रकार बिना कारण के कार्य नहीं हो सकता, उसी प्रकार कर्म के बिना परिणाम भी नहीं हो सकता; पूर्वजन्म में किये गये सभी कर्मों को ज्योतिष की सहायता से बहुत स्पष्ट रूप से देखा और समझा जा सकता है; जिस प्रकार अन्धकार में दीपक या टार्च आदि का प्रकाश अन्धकार में छिपी हुई वस्तुओं को उजागर कर देता है, उसी प्रकार ज्योतिष व्यक्ति के भविष्य को दर्शाता है;

चार पुरुषार्थों का महत्व

मानव जीवन के चार उद्देश्य हैं- अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष; ये चारों ही जीवन के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण हैं; इन चारों को सम्मिलित रूप से चतुर्विध पुरुषार्थ कहा जाता है. आइये इन चारों का महत्व जानते हैं; जन्म कुंडली में विभिन्न भावों के आधार पर मानव जीवन के विभिन्न उद्देश्यों का विचार पूर्वगामी अनुच्छेदों में पहले ही किया जा चुका है;

भारतीय विद्वानों के अनुसार जीवन का मुख्य लक्ष्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति है; वेदों में इन चार उद्देश्यों को पुरुषार्थ या 'पुरुषार्थ चतुष्टय' कहा गया है; ये चारों आपस में जुड़े हुए हैं और मानव जीवन के आधार स्तंभ हैं; ये चारों उद्देश्य समान रूप से महत्वपूर्ण हैं क्योंकि चारों एक दूसरे के पूरक हैं; वास्तव में इन्हें चार कहने के बजाय एक ही कहा जा सकता है क्योंकि ये एक ही सत्य के चार भाग हैं; साथ ही, अर्थ और काम भौतिकवाद के भाग हैं और धर्म और मोक्ष आध्यात्मवाद के भाग हैं, ये चारों समान रूप से महत्वपूर्ण हैं;

अंतिम लक्ष्य मोक्ष है – चार पुरुषार्थों में केवल अर्थ पर ही ध्यान न देकर मोक्ष के लिए प्रयास करना आवश्यक है; इसलिए मोक्ष रूपी पुरुषार्थ के तीन भाग अर्थात् अर्थ, धर्म और काम को त्रिवर्ग पुरुषार्थ की श्रेणी में रखा गया है जिसमें धर्म पुरुषार्थ पर सबसे अधिक, अर्थ पुरुषार्थ पर उससे कम और काम पुरुषार्थ पर सबसे कम जोर दिया गया है; धर्म, अर्थ और काम, ये तीन पुरुषार्थ मोक्ष प्राप्ति के साधन हैं; त्रिवर्ग पुरुषार्थ पृथ्वी पर मनुष्य द्वारा किए जाने वाले कार्यकलाप हैं और मोक्ष इन तीनों कार्यों का परिणाम है. धर्म शास्त्रों के अनुसार अर्थ, धर्म और काम रूपी त्रिवर्ग कर्तव्यों के पूर्ण होने के बाद मनुष्य मोक्ष को प्राप्त करता है. भारतीय अवधारणा में मोक्ष ही परम पुरुषार्थ है. यदि मनुष्य मोक्ष को प्राप्त कर लेता है, तो वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है और ब्रह्म में लीन हो जाता है.

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