प्रारंभिक ज्योतिष ज्ञान

एक राशि-चक्र (भचक्र) या जन्म कुंडली में 12 राशियां, 12 भाव, 9 ग्रह, 27 नक्षत्र और नक्षत्रों के 108 चरण होते हैं.

राशियों का लिंग: विषम राशियां जैसे कि मेष (1), मिथुन (3), सिंह (5), तुला (7), धनु (9) व कुंभ (11) पुरुलिंग हैं. दूसरी ओर, सम राशियां जैसे कि वृष (2), कर्क (4), कन्या (6), वृश्चिक (8), मकर (10) व मीन (12) स्त्रीलिंग हैं.
Zodiac Sign Numbers, Signs and their symbols & owners - Image one
राशियां-प्रतीक चिह्न-एक
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राशियां-प्रतीक चिह्न-दो

सरस्वती महाभागे विद्ये कमललोचने। विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोस्तुते।।

सरस्वती देवी – ज्ञान व ज्योतिष विद्या की देवी

कुंडली के 12 भावः उनके नाम व कारकत्व

भाव या घरनाम व कारकत्व
1तनु (शरीर), मूर्ति (रंग), उदय (उठता हुआ), शिर (सिर)
2वाग् (वाणी), वित्त (धन), कुटुंब (परिवार), दाहिनी आँख
3सहोदर (छोटा भाई), संचार, गला, पराक्रम (वीरता), शौर्य (बहादुरी), कर्ण (कान), पड़ोसी, छोटी यात्रा
4सुख (आराम), पानी, बंधु (दोस्त और रिश्तेदार), हृद (हृदय), रसातल (नादिर), हिबुक (छाती), वेशमा (निवास), वाहन, मातृ (मां)
5बुद्धि, प्रभाव, आत्मज (पुत्र), मंत्र (सलाह क्षमता), विवेक, उदर (पेट)
6रोग (बीमारी), रिपु (शत्रु), ऋण, व्यसन, चोरी, नौकर
7कलत्र (जीवनसाथी), यौन इच्छा, दही, लेन-देन
8आयु, गुह्य (छिपा हुआ), मरण (मृत्यु), रंध्र (बुरा), विघ्न (बाधाएँ)
9धर्म (कर्तव्य), दया (करुणा), पितृक (पिता), भाग्य, गुरू, तपस (तपस्या), लंबी यात्रा, अर्जित योग्यता
10दशम (दसवां), कर्म (कार्य), आज्ञा (आदेश), मान (सम्मान), आस्पद (पद), खम (आकाश)
11आयम् (आय), लाभ, स्थायी मित्रता, बड़ा भाई
12व्यय, विनाश, दुर्भाग्य, शय्या सुख, एकांत, कारावास
Zodiac houses, their names & significations.
भावों या घरों के कारकत्व
Significators of zodiac houses.
भावों के कारक ग्रह

राशियों से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

अग्नि – 1, 5, 9; पृथ्वी – 2, 6, 10; वायु – 3, 7, 11; जल – 4, 8, 12

पूर्व – 1, 5, 9; दक्षिण – 2, 6, 10; पश्चिम – 3, 7, 11; उत्तर – 4, 8, 12

योद्धा – 1, 5, 9; व्यापारी – 2, 6, 10; सेवक – 3, 7, 11; पुरोहित – 4, 8, 12

पुरुलिंग – 1, 3, 5, 7, 9, 11; स्त्रीलिंग – 2, 4, 6, 8, 10, 12

सकारात्मक – 1, 3, 5, 7, 9, 11; नकारात्मक – 2, 4, 6, 8, 10, 12

दिवा व रात्रि राशियां

दिवा राशियां – 1, 3, 5, 7, 9, 11; रात्रि राशियां – 2, 4, 6, 8, 10, 12

चल राशियां – 1, 4, 7, 10; स्थिर राशियां – 2, 5, 8, 11; सामान्य राशियां – 3, 6, 9, 12

खनिज, वनस्पति व पशु राशियां

खनिज राशियां – 1, 4, 7, 10; वनस्पति राशियां – 2, 5, 8, 11; पशु राशियां – 3, 6, 9, 12

फलदायी और बंजर या बांझ राशियां

फलदायी राशियां – 2, 4, 7, 8, 9, 10, 11, 12; बंजर राशियां – 1, 3, 5, 6

दिवा (दिवा बली) व रात्रिकालीन (रात्रि बली) राशियां

दिवाबली राशियां – 5, 6, 7, 8, 11, 12; रात्रिबली राशियां – 1, 2, 3, 4, 9, 10

राशियों की लंबाई

लघु राशियां – 1, 2, 11, 12; मध्यम राशियां – 3, 4, 9, 10; लंबी राशियां – 5, 6, 7, 8

मानव, सरीसृप व पशुवत राशियां

मानव राशियां – 3, 6, 7, 9 का प्रथम भाग, 11; सरीसृप राशियां – 4, 8, 10 का दूसरा भाग, 12; पशुवत राशियां – 1, 2, 5, 9 का दूसरा भाग, 10 का प्रथम भाग

उत्तरी – 1, 2, 3, 4, 5, 6; दक्षिणी – 7, 8, 9, 10, 11, 12

विषुवतीय – 1, 7; उष्णकटिबंधीय – 4, 10

हिंसक – 1, 8; ध्वनि – 3, 7, 11

शीर्षोदय राशियां – 3, 5, 6, 7, 8, 11; पृष्ठोदय राशियां – 1, 2, 4, 9, 10; उभयोदय राशियां – 12

राशियांमावन अंगरंग
मेषसिरलाल
वृषचेहरासफेद
मिथुनछातीहरा
कर्कहृदयलाल
सिंहपेटधुएँ का रंग
कन्याकमरविविध रंग
तुलानिचला उदरकाला
वृश्चिकयौन अंगसुनहरा
धनुजांघेंपीला
मकरघुटने के जोड़सफेद लाल
कुंभटांगेंनेवले का रंग
मीनपैरसफेद

राशियां: उनके गुण, विशेषताएं और भविष्य-कथन में इनका प्रयोग

राशियां प्रथम राशि मेष से क्रमिक रूप से चल, स्थिर और सामान्य होती हैं.

1). चल राशियां: मेष, कर्क, तुला, मकर; गुण: चल या कार्डिनल; विशेषताएं: राजसिक (सक्रिय, भावुक और उत्तेजित); आत्मविश्वासी, बलवान, मिलनसार, ऊर्जावान, त्वरित और गतिशील; चल राशियां मुख्य रूप से सिर और गैसीय अवस्था को दर्शाती हैं क्योंकि ये मंगल के सबसे निकट होती हैं; भविष्य-कथन में प्रयोग: यदि कुंडली में अधिकांश ग्रह चर राशियों में हों, तो जातक अत्यधिक महत्वाकांक्षी और उद्यमी होगा; उसमें नेतृत्व के गुण होंगे; वह आक्रामक, मुखर और स्वतंत्र विचारों वाला होगा; संवेदनशीलता की कमी होगी; वह लापरवाह और विनाशकारी हो सकता है; शीर्ष पर पहुंचने के रास्ते में कई लोगों को चोट पहुंचा सकता है.

2). स्थिर राशियां: वृषभ, सिंह, वृश्चिक, कुंभ; गुण: स्थिर; विशेषताएं: तामसिक (सुस्त और निष्क्रिय); चल राशियों के विपरीत; स्थिर, तटस्थ, गतिहीन; संचयी; स्थिर राशियां मुख्य रूप से अंग हृदय और ठोस अवस्थाओं से संबंधित हैं और इसलिए उन्हें शनि के निकट माना जाता है; विशेष ध्यान: नए वांछित मकान में प्रवेश के लिए या नए वांछित पद पर आसीन होने के लिए स्थिर राशि के उदय होने का समय चुनना चाहिए; इससे मकान या पद पर अधिक समय तक रहना संभव होगा; भविष्य-कथन में प्रयोग: यदि अधिकांश ग्रह स्थिर राशियों में हों, तो जातक निष्क्रिय, आलसी, कंजूस, हठधर्मी, रूढ़िवादी तथा उद्यम एवं परिवर्तन में रुचि न रखने वाला होगा; धैर्यवान होगा, यथास्थिति को तरजीह देगा तथा नए विचारों एवं प्रवृत्तियों के प्रति अनुत्तरदायी होगा; तथापि, गहन एवं गंभीर अनुसंधान करने में सक्षम होगा; अच्छी स्मरण शक्ति होगी; दृढ़, जिद्दी होगा तथा दूसरों के दृष्टिकोण के प्रति खुला नहीं होगा; स्वयं पर अटूट विश्वास होगा; आत्मनिर्भर एवं निरंकुश होगा; एकांत पसंद करेगा; असंवेदनशील एवं आत्मकेंद्रित हो सकता है; अच्छी सहनशक्ति होगी; रोग दीर्घकालिक होंगे तथा सामान्यतः हृदय, फेफड़े, रीढ़ एवं जनन अंगों से संबंधित होंगे; बैंकिंग, निवेश एवं संचित धन से धनार्जन करेगा; सरकार या किसी प्रतिष्ठित संस्थान या फर्म में नौकरी करेगा; एक चिकित्सक भी हो सकता है.

3). सामान्य राशियां: मिथुन, कन्या, धनु, मीन; गुण: सामान्य या द्विस्वभाव; विशेषताएं: सात्विक (शुद्ध, शांत और सामंजस्यपूर्ण); शारीरिक रूप से चुस्त और सक्रिय लेकिन सहनशक्ति की कमी होगी; बहुमुखी, लचीला, स्वप्निल, आसानी से हतोत्साहित, अनिर्णायक, बेचैन, अंतर्मुखी, सतही, चालाक और चंचल; ये राशियाँ बुध और द्रव अवस्था के सबसे करीब हैं; भविष्य-कथन में प्रयोग: यदि अधिकांश ग्रह सामान्य राशियों में हों, तो जातक विभिन्न विषयों का अध्ययन करने के लिए मानसिक रूप से प्रवृत्त होगा; दार्शनिक मन होगा; सहज ज्ञान युक्त होगा; सांसारिक नहीं होगा; वास्तव में भावुक होगा; प्रायः उसके प्रयासों को मान्यता नहीं मिलेगी तथा उसे पुरस्कृत नहीं किया जाएगा; अपने सामने आने वाले अवसरों को खो सकता है; व्यवस्थित होगा, लेकिन संपूर्ण नहीं होगा; अविश्वसनीय, लेकिन सहानुभूतिपूर्ण हो सकता है; गुणी हो सकता है, लेकिन प्रसिद्धि प्राप्त नहीं कर सकता; पसंद करने योग्य व्यक्ति होगा; अधीनस्थ पद पसंद करेगा; सामान्य राशियां फेफड़े, आंत, कूल्हे और पैरों से संबंधित हैं; जातक तंत्रिका विकार से पीड़ित हो सकता है तथा एलर्जी से ग्रस्त होगा; जातक के उपचार के प्रति उदासीनता के कारण रोग दीर्घकालिक हो सकते हैं; वर्दीधारी सेवा में हो सकता है; ऐसे स्थानों पर काम कर सकता है जहां सार्वजनिक वस्तुओं को संभाला जाता है; वक्ता, शिक्षक, संपादक या यात्री हो सकता है; सामान्य राशि में शुक्र एक से अधिक पत्नी देता है.

राशि चक्र के तत्व: उनकी विशेषताएं

ये राशियां क्रमशः प्रथम राशि मेष से अग्नि, पृथ्वी, वायु और जल तत्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं.

1). अग्नि तत्व की राशियां: मेष, सिंह और धनु अग्नि तत्व की राशियां हैं; अग्नि तत्व स्वभाव से अलगाववादी है; अग्नि तत्व मानसिक शरीर और बुद्धि से मेल खाता है; यह निम्न मन का प्रतिनिधित्व करता है जबकि वायु तत्व उच्च मन का प्रतिनिधित्व करता है; विशेषताएं: साहसी, दृढ़ निश्चयी, ऊर्जावान, सक्रिय, उत्साही, स्वतंत्र, गतिशील, गर्वित, उद्यमी, नेता, तर्कशील, आत्मविश्वासी, शीघ्र, मानसिक रूप से कुशाग्र, अधीर, हठी; ज्वर, सूजन और अल्प अवधि के तीव्र विकारों से ग्रस्त; बौद्धिक रूप से इंजीनियरिंग के अध्ययन के लिए तथा धातु, अग्नि और बिजली से जुड़े व्यवसायों के लिए इच्छुक; सैनिक, वर्दीधारी सेवाएं, मैकेनिक, इंजीनियर आदि इसके दायरे में आते हैं.

2). पृथ्वी तत्व की राशियां: वृषभ, कन्या और मकर पृथ्वी तत्व की राशियां हैं; पृथ्वी तत्व आक्रामकता का प्रतिनिधित्व करता है और यह स्थिर है; पृथ्वी तत्व भौतिक शरीर से मेल खाता है; विशेषताएं: सावधान, मितव्ययी, संदिग्ध, आरक्षित, व्यावहारिक, व्यवस्थित, वैज्ञानिक, जिद्दी, धीमा और दृढ़; भौतिकवादी दुनिया से जुड़ा हुआ; धन, शक्ति, स्थिति और प्रतिष्ठा इस तत्व को आकृष्ट करते हैं; यह पुरानी और वायु संबंधी बीमारियों से ग्रस्त है; खनन, व्यापार, निर्माण आदि के काम के प्रति आकर्षित हो सकता है.

3). वायु तत्व की राशियां: मिथुन, तुला और कुंभ वायु तत्व वाली राशियां हैं; वायु तत्व सामंजस्य का प्रतिनिधित्व करता है; वायु तत्व मनुष्य के तर्क, अतिचेतन और उच्चतर स्वभाव से मेल खाता है; विशेषताएं: मानवीय, परिष्कृत, शिष्ट, सहानुभूतिपूर्ण, सौम्य, कलात्मक, कल्पनाशील, सुसंस्कृत, संतुलित, हंसमुख, जिज्ञासु, विश्वास दिलाने वाला, व्यवहार कुशल, सुविज्ञ और पढ़ने वाला; संगीत और कला में रुचि रखने वाला; कम जीवन शक्ति वाला, लेकिन बहुत अधिक मानसिक शक्ति वाला; इसके प्रभाव में शारीरिक बनावट मोटी और रंग साफ होगा; अत्यधिक परिश्रम के कारण थकावट और तंत्रिका-विक्षोभ होगा; वैज्ञानिक, गणितज्ञ, पत्रकार, शिक्षक, लेखाकार, वकील, कलाकार, साहित्यकार आदि इसके दायरे में आते हैं; नौकरी में मांसपेशियों की अपेक्षा बुद्धि का प्रयोग होना चाहिए.

4). जल तत्व की राशियां: कर्क, वृश्चिक और मीन जल तत्व की राशियां हैं; जल तत्व मानसिक स्थिति से संबंधित है; जल तत्व भावनाओं और भावनात्मक व्यक्तित्व से मेल खाता है; विशेषताएं: मिलनसार, डरपोक, निष्क्रिय, ग्रहणशील, भावुक, चिंतनशील, सहज, संवेदनशील, प्रभावशाली, मध्यमवादी, परिवर्तनशील, अंतर्मुखी और शर्मीला; रहस्यमय विज्ञान में रुचि; कमजोर शारीरिक गठन और रोग प्रतिरोधक क्षमता सीमित होगी; एनीमिया, ट्यूमर, कैंसर वृद्धि, पाचन विकार, ऊपरी श्वसन पथ और गैस्ट्रो-मूत्र प्रणाली में रोग इस तत्व से संबंधित हैं; तरल पदार्थ से संबंधित सभी कार्य इस तत्व के दायरे में आते हैं; भावनाओं से संबंधित व्यवसाय (नाटक, थिएटर, आदि) भी इस तत्व के दायरे में आते हैं.

क्या आप जानते हैं कि – 1). कर्क, मकर और मीन राशि में जल की मात्रा पूरी होती है. 2). वृषभ, धनु और कुंभ राशि में जल की मात्रा आधी होती है. 3). मेष, तुला और वृश्चिक राशि में जल की मात्रा एक-चौथाई होती है। 4). मिथुन, सिंह और कन्या राशि में जल की मात्रा बिलकुल नहीं होती.

ग्रहों से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

1). सूर्य - स्वयं और शरीर; चंद्रमा - मन; मंगल - शक्ति; बुध - वाणी; बृहस्पति - ज्ञान व सुख; शुक्र - सेक्स; शनि - दुःख; राहु - मायाजाल; केतु - मोक्ष का प्रतिनिधित्व करता है.

2). सूर्य - पूर्व दिशा; चंद्रमा – उत्तर-पश्चिम, मंगल – दक्षिण; बुध – उत्तर; बृहस्पति – उत्तर-पूर्व; शुक्र – दक्षिण-पूर्व; शनि – पश्चिम; राहु – दक्षिण-पश्चिम; केतु – उत्तर-पूर्व दिशा का प्रतिनिधित्व करता है.

3). बृहस्पति और बुध पहले घर में; चंद्रमा और शुक्र चौथे घर में; शनि सातवें घर में; सूर्य और मंगल दसवें घर में दिग्बली व शक्तिशाली होते हैं.

4). बृहस्पति और शुक्र ब्राह्मण हैं; सूर्य और मंगल क्षत्रिय हैं; चंद्रमा और बुध व्यापारिक समुदाय हैं; शनि सेवाकर्ता समुदाय है; राहु और केतु विधर्मी समुदाय या राष्ट्रीयता के व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं.

5). सूर्य लाल रंग का है; चंद्रमा- सफेद; मंगल- लाल; बुध- हरा; बृहस्पति- पीला; शुक्र- विविध रंग (न काला, न सफेद); शनि- नीला; राहु- काले रंग का है.

6). सूर्य - राजा; चंद्रमा - रानी; मंगल - सेनापति; बुध - राजकुमार; बृहस्पति - देवताओं के गुरू; शुक्र - राक्षसों के गुरू; शनि - सेवकों; राहु और केतु - सैनिकों का प्रतिनिधित्व करते हैं.

7). सूर्य को मेष राशि में 10 अंश तक उच्च और तुला राशि में 10 अंश तक नीच का माना जाता है. सिंह राशि में 20 अंश तक सूर्य को मूलत्रिकोण राशि में माना जाता है. सिंह राशि में 20 से 30 अंश तक सूर्य को स्वराशि में माना जाता है.

8). चन्द्रमा वृषभ राशि में 3 अंश तक उच्च तथा वृश्चिक राशि में 3 अंश तक नीच का होता है. वह वृषभ राशि में 3 अंश से 27 अंश के मध्य मूलत्रिकोण राशि में होता है. चन्द्रमा कर्क राशि में 0 से 30 अंश के मध्य स्वराशि में होता है.

9). मंगल मकर राशि में 28 अंश तक उच्च और कर्क राशि में 28 अंश तक नीच का होता है. मेष राशि में 12 अंश तक वह मूलत्रिकोण राशि में होता है. मेष राशि में 12 से 30 अंश के बीच मंगल स्वराशि में होता है.

10). बुध को कन्या राशि में 15 अंश तक उच्च और मीन राशि में 15 अंश तक नीच का माना जाता है. कन्या राशि में 20 अंश तक बुध को मूलत्रिकोण राशि में माना जाता है. कन्या राशि में 20 से 30 अंश तक बुध को स्वराशि में माना जाता है.

11). बृहस्पति को कर्क राशि में 5 अंश तक उच्च और मकर राशि में 5 अंश तक नीच का माना जाता है. बृहस्पति को धनु राशि में 10 अंश तक मूलत्रिकोण राशि में माना जाता है. बृहस्पति को धनु राशि में 10 से 30 अंश के बीच होने पर स्वराशि में माना जाता है.

12). शुक्र को मीन राशि में 27 अंश तक उच्च और कन्या राशि में 27 अंश तक नीच का माना जाता है. तुला राशि में 15 अंश तक शुक्र को उसकी मूलत्रिकोण राशि में माना जाता है. तुला राशि में 15 से 30 अंश तक शुक्र को स्वराशि में माना जाता है.

13). शनि को तुला राशि में 20 अंश तक उच्च और मेष राशि में 20 अंश तक नीच का माना जाता है. कुंभ राशि में 20 अंश तक शनि को उसकी मूलत्रिकोण राशि में माना जाता है. कुंभ राशि में 20 से 30 अंश के बीच शनि को स्वराशि में माना जाता है.

14). जैमिनी चाल कारकों का निर्धारण ग्रहों के अवरोही अंशों के अनुसार किया जाता है. किसी कुंडली में सबसे अधिक अंश वाले ग्रह को आत्म कारक और सबसे कम अंश वाले ग्रह को स्त्री या दारा कारक कहा जाता है. इनके बीच क्रमशः अमर्त्य, भ्रातृ, मातृ, पितृ, पुत्र और गनाति कारक होते हैं. इस प्रक्रिया में राहु व केतु को शामिल नहीं किया जाता है.

15). सूर्य ग्रह चन्द्रमा, मंगल और बृहस्पति को अपना मित्र मानता है; वह बुध के प्रति तटस्थ है; वह शुक्र, शनि, राहु और केतु को अपना शत्रु मानता है. दूसरी ओर, चन्द्रमा, सूर्य और बुध को अपना मित्र मानता है; वह अन्य सभी ग्रहों के प्रति तटस्थ है. वह किसी भी ग्रह को अपना शत्रु नहीं मानता.

16). मंगल सूर्य, चन्द्रमा, बृहस्पति और केतु को अपना मित्र मानता है; वह बुध और राहु को अपना शत्रु मानता है; वह शुक्र और शनि के प्रति तटस्थ है.

17). बुध सूर्य और शुक्र को अपना मित्र मानता है; वह चंद्रमा को अपना शत्रु मानता है; वह मंगल, बृहस्पति, शनि, राहु और केतु के प्रति तटस्थ है.

18). बृहस्पति सूर्य, चंद्रमा, मंगल, राहु और केतु को अपना मित्र मानता है. वह बुध और शुक्र को अपना शत्रु मानता है. शनि के प्रति यह तटस्थ है.

19). शुक्र बुध, शनि, राहु और केतु को अपना मित्र मानता है; वह सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानता है; वह मंगल के प्रति तटस्थ है.

20). शनि बुध, शुक्र और राहु को अपना मित्र मानता है; वह सूर्य, चंद्रमा और मंगल को अपना शत्रु मानता है; वह बृहस्पति और केतु के प्रति तटस्थ है.

21). राहु और केतु शनि, बुध और बृहस्पति को मित्र मानते हैं; वे सूर्य और चंद्रमा को शत्रु मानते हैं; वे मंगल और शुक्र के प्रति तटस्थ रहते हैं.

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ग्रह: गुण एवं विशेषताएं

यहां ग्रहों के गुण एवं विशेषताएं निम्नानुसार दी गई हैं:

सूर्य

सूर्य का शरीर चौकोर है; उसका रंग गहरा लाल है; उसकी आँखों की चमक पीली है; उसके शरीर में पित्त का द्रव्य है; शारीरिक कद में वह औसत लंबाई का है; पराक्रमी है; स्वभाव से सात्विक है; बहुत कम बाल हैं; गतिविधियों के कारण से घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है; बहुत कम शब्दों में अर्थ देने वाली वाणी का स्वामी है; बहुत कम देता है; उसकी बुद्धि दैवीय रूप से उन्मुख है;

चंद्रमा

चन्द्रमा श्वेत गोल शरीर, मध्यम आकार, वाणी कौशल, सम्यक् विचार शक्ति वाला ग्रह है. वह शरीर से कुछ दुर्बल, मधुर वाणी वाला व स्वभाव से सात्विक है. वह पित्त, कफ, वायु तीनों स्वभावों से युक्त होता है.

मंगल

मंगल क्रोध से लाल आंखों वाला, शरीर का रंग सफेद लाल, पित्त प्रधान अर्थात गर्म स्वभाव वाला, अभिमानी स्वभाव वाला, दुबले शरीर वाला, पाप में प्रवृत्त, पराक्रमी, भोगविलास में लीन ग्रह है.

बुध

बुध ग्रह हरी घास के समान रंग का है; बहुत विद्वान है; महत्वाकांक्षी है; सत्यभाषी है; विनोदी है; पित्त, कफ और वायु तीनों द्रव्यों से युक्त है; शीघ्रता से पद आदि प्रदान करता है; नपुंसक है;

बृहस्पति

बृहस्पति सात्विक स्वभाव का है, सभी अच्छे गुणों से युक्त है, पीली आंखों वाला है, सिर पर बाल नहीं हैं;

शुक्र

शुक्र ग्रह की आंखें सुन्दर होती हैं; वह कामुक स्वभाव का होता है; सुख, शक्ति और सुन्दर रंगत प्रदान करता है; उसके शरीर पर काले बाल होते हैं; वह महत्वाकांक्षी स्वभाव का होता है; तथा सभी अच्छे गुणों से युक्त होता है.

शनि

शनि ग्रह क्रूर है, दुबला-पतला लम्बा शरीर है; पीली आंखें और कठोर बाल हैं; बड़े आकार के दांत हैं; तामसिक प्रकृति है (जड़ता से पूर्ण); वायु यानि स्नायु संबंधी परेशानी पैदा करता है; वाणी में रूखा है; घृणित है;

क्र.सं.नक्षत्रस्वामीराशि स्वामी
1.अश्विनी, मघा, मूलकेतुमंगल, सूर्य, बृहस्पति
2.भरणी, पूर्व फाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनीशुक्रमंगल, सूर्य, बृहस्पति
3.कृतिका, पूर्वासाढ़ा, उत्तरासाढ़ासूर्यमंगल व शुक्र, सूर्य व बुध, बृहस्पति व शनि
4.रोहिणी, हस्त, श्रवणचंद्रमाशुक्र, बुध, शनि
5.मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठामंगलशुक्र व बुध, बुध व शुक्र, शनि व शनि
6.आर्द्रा, स्वाति, शतभिषाराहुबुध, शुक्र, शनि
7.पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व भाद्रपदबृहस्पतिबुध व चंद्रमा, शुक्र व मंगल, शनि व बृहस्पति
8.पुष्य, अनुराधा, उत्तर भाद्रपदशनिचंद्रमा, मंगल, बृहस्पति
9.अश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवतीबुधचंद्रमा, मंगल, बृहस्पति

1. जन्म ज्योतिष

2. सांसारिक ज्योतिष

3. प्रश्न ज्योतिष

4. चिकित्सा ज्योतिष

5. जैमिनी ज्योतिष

6. वास्तु ज्योतिष

7. वैदिक ज्योतिष

8. केपी ज्योतिष

9. अंक ज्योतिष

ऋषि पराशर के अनुसार, दशा प्रणालियां बयालीस प्रकार की होती हैं; इनमें से कुछ प्रचलित दशाएं नीचे दी जा रही हैं; हालाँकि, सबसे प्रचलित दशा विंशोत्तरी दशा प्रणाली है;

1. विंशोत्तरी दशा

2. अष्टोत्तरी दशा

3. कालचक्र दशा

4. षोडशोत्तरी दशा

5. योगिनी दशा

6. जैमिनी दशा

राशि चिह्नों के लिए ज्योतिषीय प्रतीक

Astrological symbols for Zodiac Signs

विंशोत्तरी दशा प्रणाली

विंशोत्तरी दशा प्रणाली वैदिक और केपी ज्योतिष सहित ज्योतिष की सभी प्रमुख शाखाओं में सबसे लोकप्रिय दशा प्रणाली है; विंशोत्तरी दशा किसी जातक के जन्म के समय किसी विशेष नक्षत्र या तारे में चंद्रमा की स्थिति पर आधारित होती है; इस प्रणाली में, सबसे पहले दशा संतुलन की गणना की जाती है; विंशोत्तरी दशा प्रणाली में, किसी जातक का जीवन चक्र 120 वर्ष का माना जाता है; तदनुसार, सभी नौ ग्रहों को अलग-अलग दशा अवधि आवंटित की गई है;

1). ग्रहों की दशा अवधि

9 ग्रहों को आवंटित दशा अवधि इस प्रकार है: सूर्य – 6 वर्ष; चंद्रमा – 10 वर्ष; मंगल – 7 वर्ष; बुध – 17 वर्ष; बृहस्पति – 16 वर्ष; शुक्र – 20 वर्ष; शनि – 19 वर्ष; राहु – 18 वर्ष; केतु – 7 वर्ष;

2) दशा शेष की गणना कैसे की जाती है?

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